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अपूर्णीय क्षति जिसकी भरपाई सम्भव ही नहीं....


दमोह: देर रात एक दुःखद सूचना मिली जब ज्ञात हुआ कि विश्व वंदनीय सन्त पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने समाधि ले ली। इस खबर ने अंदर तक हिला दिया, मानव कल्याणार्थ आचार्य श्री ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। धार्मिक आध्यात्मिक चेतना जन जन तक जागृत हो इसके लिए उनका अघोषित आंदोलन निसन्देह लाखो करोड़ो लोगो तक पहुंचा और आचार्य श्री पथगामी बने। उनका नश्वर देह को त्यागना न सिर्फ जैन धर्म के अनुयायियों को बल्कि सम्पूर्ण विश्व की मानव समाज के लिए एक ऐसी क्षति है जिसे सदियों बाद तक कोई पूरा नही कर सकता।
मेरे व्यक्तिगत जीवन मे पूज्य आचार्य श्री का अहम स्थान है, इस जीवन को सही मायने में जिनसे रास्ता मिला जिनसे ऊर्जा मिली उनमें अहम आचार्य श्री हैं, जैन धर्म का अनुयायी न होने के बाद भी जैनत्व की दिशा में मुझे ले जाने का रास्ता पूज्य आचार्य श्री से मिला। सार्वजनिक और सामाजिक जीवन के शुरुवाती दौर में कुछ घटनाक्रम ऐसे घटे जो मेरे जैसे युवा को तोड़ने के लिए पर्याप्त थे, मुझे ये सार्वजिनक स्वीकारने में परहेज नही की मेरी जगह उस उम्र और अवस्था मे तत्कालीन परिस्थितियों में कोई और नोजवान होता तो शायद वो इस क्षेत्र और जनसेवा के माध्यम को त्याग देता लेकिन पूज्य आचार्य श्री ने उस वक़्त अपने आशीर्वाद से इस काबिल बना दिया कि जीवन के इतने समय मे कई तकलीफे कई अच्छे बुरे वक्त से सामना हुआ लेकिन अपने मार्ग और संकल्प पर अडिग रहा। यकीनन जो लोग मुझे जानते हैं उनको एहसास होगा कि कभी व्यथित या तनाव ग्रस्त नजर नहीं आया पर ऐसा नही है की जीवन व्यथाहीन या तनाव हीन है अपितु कई बार ऐसे अवसर आये जब जीवन तनाव से भरा लेकिन ऐसे समय मे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पूज्य आचार्य श्री मेरा सहारा बने। जब भी मन विचलित होता है तब कुछ एक ऐसे स्थान है जहां जाने से सुकून मिल जाता है और कुछ ऐसे सन्त महात्मा हैं जिनका सानिध्य और आशीष मुझमें सकारात्मक ऊर्जा भर देता है आचार्य श्री वही हैं जब मन विचलित होता उनका स्मरण और सम्भव हुआ तो दर्शन करने मात्र से सब हालात ठीक हो जाते थे। बीते दो दशकों से ज्यादा समय मे कब और कहां कितनी बार उनके दर्शन कर आशीर्वाद लेने का अवसर मिला मुझे खुद भी याद नही पर ये भी सच है कि उनका स्थान सदैव हृदय में रहा। आचार्य श्री को सुनने और पढ़ने का अवसर भी बचपन से मिला और भाग्यशाली रहा कि संचार माध्यमो से अलग उनके सन्मुख रहकर उन्हें सुना और उनके प्रवचनों को जीवन मे उतारने की कोशिश भी की। पूज्य आचार्य श्री जीवन पर्यंत मेरे लिए एक धार्मिक संत भर नही बल्कि मेरे पथ प्रदर्शक ही रहेंगे उनका स्थान मेरे लिए ईश्वर तुल्य रहा है और सदैव रहेगा। जीवन के कई संस्मरण है जिन्हें लिपिबद्ध करने में लम्बा समय लगेगा किंतु इतना अवश्य कहूंगा कि आज जिस छोटे मोटे स्थान पर में हूँ उस स्थान के निर्माण की बुनियाद आचार्य श्री के बताये मार्ग पर ही निर्मित है, आज पूज्य आचार्य श्री दैहिक रूप से हमसे बिछड़ गए लेकिन दैविक रूप से उनकी उपस्थिति सदैव हम सब के बीच रहेगी। धर्म जाति मजहब विचारधारा से परे उनके विचार इस दुनिया मे अमर रहेंगे और सम्पूर्ण जीवो के बीच ब्रह्मांड में उनकी वाणी अमर रहेगी। मेरे जैसे न जाने कितने असंख्य लोग इस दुनिया मे होंगे जिनके जीवन मे उनका अहम स्थान है , आज नम आंखें बस इतना ही कह रही हैं कि उनकी कृपा मेरे साथ सम्पूर्ण दुनिया पर बनी रहे। आप सदैव हमारे थे और हमारे ही रहेंगे, इतना सामर्थ्य दीजिएगा की सद्कार्य सम्पादित करता रहूं नेक रास्ते पर चलकर आपके मिशन में राम जी की गिलहरी का किरदार निभाता रहूं, दुनिया और लोगों की आलोचना समालोचना से कभी व्यथित न हो पाऊं और जैसा आप कहते रहे हैं कि लक्ष्य का निर्धारण अपनी शक्ति से अधिक भले हो लेकिन आत्मविश्वास उस लक्ष्य की प्राप्ति में सदा सहायक होता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति होकर ही रहेगी।
सम्पूर्ण जीवन आपके दैविक आशीष का अभिलाषी रहूंगा
नमोस्तु आचार्य श्री...
महेंद्र दुबे

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